जमींदार और नौकर -
एक बार की बात है कि एक जमींदार सैर-सपाटे को निकला। मार्ग में उसके किसी मित्र ने उसे भुनी मुर्गी और बढ़िया मदिरा बोतल उपहार में दी। जमींदार ने देखा कि उसका नौकर सामने से चला आ रहा है, उसने उसे आवाज देकर कहा कि यह झोला घर ले जाकर सीधे बावर्चीखाने में दे देना। लेकिन याद रहे कि इसे रास्ते में खोलना मत। इसमें एक कीमती चिड़िया बंद है और एक शीशी में जहर है। अगर झोला खोलोगे तो चिड़िया फुर्र हो जाएगी। चिड़िया बहुत कीमती है।"
नौकर उम्र का बच्चा था, लेकिन बुद्धि का पक्का था। झोले से निकलती महक से वह वास्तविकता समझ गया और जैसे ही उसका मालिक आंखों से ओझल हुआ, उसने एकांत में वह झोला खोला और दोनों चीजें चट कर गया। जमींदार जब घर पहुंचा तो उसे पता चला कि झोला तो उसके बावर्चीखाने में पहुंचा ही नहीं। लाल-पीला होता वह नौकर को ढूंढने लगा। नौकर उसे एक पेड़ के नीचे खर्राटे लेते मिला। जमींदार ने उसकी पीठ पर कसकर एक ठोकर मारी और बोला - अबे ओ हरामखोर उठ ! नौकर आंखें मोड़ते हुए उठ बैठा और जमींदार को देखकर पलकें झपकाने लगा। उसके सिर पर नशा सवार था और आंखें मुंदी जा रही थीं। जमींदार ने उससे पूछा कि तुमने झोला बावर्चीखाने में क्यों नहीं दिया? "हुजूर...माफ कर दें, मुझसे गलती हो गई।" नौकर ने सफाई पेश करते हुए कहा-"मेरे हाथ से झोला छूट गया और उसमें बैठी चिड़िया फुर्र हो गई।" जमींदार समझ गया कि नौकर उसे बेवकूफ बना रहा है। अब उसे चिड़िया के उड़ने की बात माननी पड़ेगी क्योंकि उसने स्वयं ही कहा था कि चिड़िया कीमती है और उड़ जाएगी। जबकि वह अच्छी तरह जानता था कि नौकर ने भुनी मुर्गी चट कर ली है। तभी उसे अंगूर के रस की याद आई-"और उस अर्क का...मेरा
मतलब है, जहर का क्या हुआ? क्या वह भी फुर्र से उड़ गया?" जमींदार क्रोधित होकर बोला। "नहीं मालिक, हुआ यह कि मैं अपनी लापरवाही के कारण आपकी डांट खाने के खयाल से इतना डर गया कि सोचने लगा, क्यों न आत्महत्या कर लूं। यही सोचकर मैं सारे का सारा जहर पी गया। अब यहां लेटकर अपनी मौत का इंतजार कर रहा हूं...अलविदा, मेरे मालिक!
- नौकर ने इत्मीनान से अपनी बात कही और फिर वहीं आंखें बन्द करके लेट गया जैसे सचमुच मौत की प्रतीक्षा कर रहा हो।
जमींदार के क्रोध की सीमा नहीं रही। वह उसे एक ठोकर और लगाते व बड़बड़ाता हुआ चला गया।
शिक्षा : झूठ आखिर झूठ ही होता है।
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